अल्लाह तआला की जात और उसकी सिफ्तों के बारे में अक़ीदे

अल्लाह एक है कोई उसका शरीक नहीं न जात में न सिफात में न अफआल (कामों) में न अहकाम (हुक्म देने) में न नामों में। वह “वाजिबुल वजूद” है यानी (जिसका हर हाल में मौजूद रहना जरूरी हो) उसका अदम मुहाल है यानी किसी जमाने में उसकी जात मौजूद न हो नामुमकिन है। अल्लाह “कदीम “और “अजली” है यानी हमेशा से है और “अबदी” भी है यानी वह हमेशा रहेगा उसे कभी मौत न आयेगी। अल्लाह तआला ही इस लाइक है कि उसकी बन्दगी और इबादत की जाये।

अकीदा :- अल्लाह बेपरवाह है किसी का मुहताज नहीं और सारी दुनिया उसी की मुहताज है।

अकीदा :- अल्लाह की जात का इदराक अक़्ल के ज़रिये मुहाल है यानी अक्ल से उसकी जात को समझना मुमकिन नहीं क्योंकि जो चीज़ अक़्ल के ज़रिये से समझ में आती है अक्ल उस को अपने घेरे में ले लेती है और अल्लाह की शान यह है कि कोई चीज़ उसकी जात को घेर नहीं सकती। अल्बत्ता अल्लाह के कामों के जरिये से मुखतसर तौर पर उसकी सिफ्तों और फिर उन सिफ्तों के जरिए अल्लाह तआला की जात पहचानी जाती है।

अकीदा :- अल्लाह तआला की सिफ्तें न ऐन हैं न गैर यानी अल्लाह तआला की सिफतें उसकी जात नहीं और न वह सिफ्ते किसी तरह उसकी जात से अलग हो सकें क्योंकि वह सिफते ऐसी है जो अल्लाह की जात को चाहती हैं और उसकी जात के लिए जरूरी हैं।

इसी सिलसिले में दूसरी बात यह भी ध्यान रखने की है कि अल्लाह की सिफतें कई हैं और अलग है और हर सिफत का मतलब भी अलग अलग है। मुतरादिफैन नहीं, इसलिए सिफतें ऐने जात नहीं हो सकतीं और सिफतें गैरे जात इसलिये नहीं है कि गैर जात मानने की सूरत में दो बातें हो सकती हैं। या तो सिफतें कदीम होंगी या हादिस (जो किसी के पैदा करने से पैदा हुई यानी मखलूक) अगर कदीमं मानते’ है तो कई एक कदीन को मानना पड़ेगा जबकि कदीम सिर्फ एक ही है और अगर हादिस तसलीम करते हैं तो यह मानना भी जरूरी होगा वह कदीम जात सिफ्तों के हादिस होने या पैदा होने से पहले बिगैर सिफ्तों के थी और यह दोनों बातें बातिल हैं।

इसलिए इन मुश्किलों से बचने के लिये अहले सुन्नत ने वह मज़हब इख़्तियार किया है कि सिफाते बारी (अल्लाह तआला की सिफ्तें) न तो ऐन जात है और न गैरे जात बल्कि सिफ्ते उस जाते मुकद्दस को लाज़िम हैं किसी हाल में उससे जुदा नहीं और जाते बारी तआला अपनी हर सिफत के साथ अजली, अबदी और कदीम है।

अकीदा :- जिस तरह अल्लाह तआला की जात कदीम, अज़ली तथा अबदी है उसी तरह उसकी सिफत्तें भी कदीम, अज़ली और अबदी हैं।

अकीदा:- अल्लाह की कोई सिफत मखलूक नहीं न जेरे कुदरत दाखिल ।

अकीदा :- अल्लाह की जात और सिफात के अलावा सब चीजें हादिस यानी पहले न थीं अब मौजूद है।

अक़ीदा :- जो अल्लाह की सिफ्तों को मखलूक कहे या हादिस बताये वह गुमराह और बद्दीन है।

बहारे शरिअत पहला हिस्सा सफा न.6

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